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मार्च, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ब्रह्म या माया दोनों में सत्य क्या है

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  मनुष्य के ऊपर भ्रम या माया का प्रभाव ----- मनुष्य इस संसार में भ्रम या माया में से किसी न किसी से प्रभावित जरूर रहता है ज्यादातर माया से ही प्रभावित रहता है। जब हम माया से संबंधित चीजों का चिंतन करते हैं तो माया हमारे ऊपर हावी हो जाती है। भौतिक जगत की जो भी वस्तुएं हम देख या स्पर्श कर सकते हैं वह सब माया ही हैं। कैसे जाने की हम माया के प्रभाव में हैं----- जिसके चिंतन से हमें लोभ मोह क्रोध भय शोक और अशांति का आभास हो , तो समझ लीजिए की माया का पूरा-पूरा प्रभाव आपके ऊपर है। कैसे जाने की हम ईश्वर के प्रभाव में है----- जो नित्य निरंतर शाश्वत परम आनंद मय है उसका चिंतन जब हम करते हैं तो देखा या छुआ नहीं जा सकता लेकिन, वह अपनी कृपा से अपने होने का एहसास करता राहत है। उसे ब्रह्म के प्रभाव में आनेसे हमें शांति संतोष सुख आनंद तथा निडरता दया परोपकार की भावना प्राप्त  होती रहती है। तो समझो कि हम ईश्वर के प्रभाव में है। अब आप यह समझ गए होंगे कि कब आप ईश्वर के प्रभाव में रहते हैं और कब माया के प्रभाव में रहते हैं और कैसे। जिसका चिंतन आप ज्यादा करेंगे उसके प्रभाव में आप रहेंगे। अब यह आपको ह...

दुखों से छुटकारा कैसे पाएं

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  मनुष्य आनंद में परमात्मा का ही अंश है अतः इसको हर वक्त आनंद सुख प्राप्त करने की इच्छा रहती है जो उचित है क्योंकि जिसकी जो प्रवृत्ति होती है उसे उसी से अनुकूल इच्छा रहेगी।  जीव जैसे ही पृथ्वी पर आता है उसे जहां-जहां अथवा जिस जिस से सुख मिलता है तब सिर्फ मिलने की उम्मीद रहती है इसलिए उसी को अपना मान लेता है और उसी से प्रेम अनुराग करता चला जाता है। यह बात और है कि उसे किस वस्तु अथवा किस व्यक्ति स्थान से सुख मिलता है यह नहीं जानता और आगे बढ़ता जाता है जैसे कोई दलदल में खड़ा हो तो कितना निकलने का प्रयास करें फसता चला जाता है।  मां बेटा भाई बंधु पति-पत्नी इष्ट मित्र व्यक्ति धन संपदा मानअपमान सब में हम सुख देखते हैं और यह जैसे ही ओझल होते हैं हमें दुख मिलने लगता है। कैसे हो दुख से छुटकारा ?  उत्तर है सत्य सत्य जानकर आप सुख एवं शांति को पा सकते हैं। सत्य क्या है?  यह जान लीजिए ईश्वर परम  न्याय प्रिय है किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं करते उन्होंने कुछ नियम बनाए हैं इसी के अनुसार हमें हमारे ही अच्छे बुरे कर्मों का फल कुशल संरक्षक की भांति हमारे भलाई को देखते हुए समय-...

स्वस्थ कैसे रहे

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स्वस्थ अर्थात अपने में स्थित हो जाना अपना वह है जहां सुख और शांति मिलती है। आपका मन जहां रम जाता है वही स्थान वस्तु व्यक्ति स्थिति परिस्थिति मनोरम हो जाती है किंतु अगले ही क्षण मन वहां से ऊब जाता है और हम अन्य स्थान वस्तु आदि भौतिक पदार्थों में मन लगाते हैं थोड़े से विश्राम सुख शांति तो मिलती है किंतु परम शांति एवं चिरस्थाई सुख शांति नहीं मिलती मन बेचैन हो जाता है ऐसा इसलिए होता है कि आपकी आत्मा इस परमात्मा का अंश है इसे हमेशा हमेशा सुख एवं शांति में ही गोता लगाने की आदत है इसलिए यह मन भटकता रहता है कहीं रमता नहीं ।  भौतिक पदार्थ नश्वर परिवर्तनशील अस्थाई है अतः यह सब हमें  अस्थाई सुख ही दे सकते हैं क्योंकि इससे अधिक इसमें क्षमता ही नहीं है आपके अपने सुख निदान परमात्मा है वह ईश्वर है अभी शांति स्थल एवं आनंद में है उनमें अपने मन को लगाओगे तो मन अभ्यास से धीरे-धीरे हरी नाम स्मरण करते रहने से मन लगने लगेगा और जब एक बार ईश्वर में मन लगने लगेगा तो फिर भौतिक वस्तुएं नीरस लगेंगे फिर आप इनके फल की आशा में नहीं बल्कि अपने धर्म कर्तव्य को अपने सुख एवं शांति का आधार माने और यदि आपने अपनी ...

कर्मों का फल कैसे बनता है और किस तरह मिलता है

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  मनुष्य जीवन आत्मा उद्धार के लिए ही मिला है आत्मा के उद्धार के मार्ग में यदि आप आगे बढ़ते हैं तो इसमें ईश्वर आपकी पग पग पर सहायता करेंगे क्योंकि यह आपका अधिकार है इसमें कोई छोटा नहीं है। ईश्वर का स्मरण करते जाओ तथा सभी बंधनों से मुक्त होते होते 1 दिन ईश्वर तुल्य हो सकते हो इसमें ईश्वर आपके साथ खुशी-खुशी तैयार हैं किंतु यदि आप भौतिक सांसारिक वस्तुओं के पीछे भागते हो अंततः दुखदाई भौतिक वस्तुओं के पीछे भागने में ही समय नष्ट करते हो तो आप ईश्वर की प्राप्ति नहीं कर पाओगे और अपने इस सांसारिक जीवन में भी खुश नहीं रह पाओगे । ईश्वर आपके कर्म को विधिवत परीक्षा करने के बाद ही फल देते हैं चाहे वह आपके लिए सुखदाई हो या दुखदाई हो किसी प्रकार का भेदभाव किसी के साथ नहीं करते। सब को एक समान मानते हुए अपने कर्म विधान के अनुसार यदि वह कर्म सत्कर्म है तो अच्छा फल और यदि वह दुष्कर्म है तो बुरा फल देते हैं। हां एक बात और है कि कितना फल देना है और कब देना है कब तक रुके रहना है या सब भी ईश्वर ही निश्चित करते हैं और सबके लिए एक समान ही नियम बनाते हैं।               ...

विवेक क्या है

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 सत्य को जान लेना ही विवेक है। कई बार होता है जो हम परिणाम माने बैठे हैं वैसा परिणाम नहीं आता हमें दुख हो जाता है जगत हमेशा परिवर्तनशील है तथा अच्छा एवं बुरा दोनों तरह का फल देने वाला है यदि यही बात हमारी समझ में बैठ जाए और हम वस्तु व्यक्ति स्थान स्थिति परिस्थिति में केवल सुख देखना बंद कर दें संसार को वैसा देखें जैसा यह संसार है जैसी इसकी वस्तुएं व्यवहार है तो हमें कष्ट नहीं होगा । उदाहरण के लिए मिर्ची तीखी होती है हम खाते हैं हमें अच्छा लगता है शराबी रास्ते में मिलता है हम उसे शराबी जानकर बगल से निकल जाते हैं इसी प्रकार परिस्थितियों में जब हम जानते रहते हैं कि यह दोनों तरह का अर्थात अच्छा या बुरा परिणाम ला सकती है तो परिणाम आने पर हमें कष्ट नहीं होगा हमें कष्ट कब होता है जब हम अपने विवेक को संकुचित कर केवल सुखदाई परिणाम की  कल्पना करते हैं और आशा महल बना कर एक  ही तरह के परिणाम की प्रतीक्षा किए जाते हैं ।  तब परिणाम अपने पक्ष में आने पर हम खुशी से झूम उठते हैं और परिणाम हमारे विपरीत हो जाता है तब हम दुखी हो जाते हैं जब भौतिक जगत सुख दुख से भरा हुआ बनाया गया है तो हम...

राम नाम जपने से क्या होता है

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 राम सत्य स्वरूप है। राम अक्षर का अर्थ है जिस को नष्ट नहीं किया जा सकता। मानव मन कभी भी निश्चिंत नहीं रहता हमेशा थोड़ी ना थोड़ी देर पर उसे कोई ना कोई भय सताने लगता है वह रह-रहकर अशांत हो जाता है और कुछ ना कुछ ऐसा खोजता रहता है जिससे वह खुश हो सके कुछ नया वह खोजता ही रहता है जैसे कि एक बच्चा अपनी मां से जब बिछड़ता है तो कुछ देर तक तो छोटी मोटी लुभावनी चीजों में खुश रह सकता है लेकिन थोड़ी देर के बाद ही वह फिर अपनी मां को खोजने लगता है मां के लिए छटपटाते रहता है जरा सोचिए कि मां में ऐसा क्या है जिसके लिए वह पूरी तरह से परेशान रहता है और  बस उसे मां के पास जाना  रहता है जानते हैं क्या मां में है वह सुरक्षा भावना जो उसे कहीं और नहीं मिलती उसे मां के पास भय से मुक्ति मिलती है अनेक इच्छाओं और सुविधाओं जिनका वह बच्चा विचार भी नहीं किया रहता लेकिन वह उसके लिए हितकारी होता है वह चीजें बिना मांगे ही मां उसे देती है ऐसी ही शांति या यूं कहिए कि इससे भी अधिक शांति तथा हमारे सुविधाओं को बिना मांगे पूर्ति करने वाला अद्भुत राम नाम जप ही है। हमें सद्गुण एवं सक्षम का विजई होना बहुत पसंद है ...

खुशी क्या होती है

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 हमारा मन जब जहां रम जाता है वह स्थान समय और स्थिति हमारे लिए अच्छी हो जाती है मन जितनी देर तक शरीर के साथ मतलब आप जहां हैं वहां है तो उतनी देर आप सुख एवं शांति का अनुभव करते हैं। वैसे तो मनचाही इच्छा की पूर्ति ही हमें सुख देती है। कहने का मतलब है कि हम जो चाहते हैं वह हमारी बात पूरी हो जाए तो हमें खुशी होती है। दुखी हम इसलिए हैं कि मेरा मन कहीं रमता नहीं इसका कारण है जो अमेरिका के फाइव स्टार होटल का आनंद लिया है जिसे हमेशा प्यार दुलार एवं सौंदर्य ही मिला हो दुख का लेश मात्र भी ना मिला हो जिसने अभाव ना देखा हो और एक स्थिति आने पर उसे झोपड़ी वाला जीवन और पल पल हर वस्तु के लिए परेशान होने वाला जीवन मिल जाए तो क्या होगा उसे खुशी नहीं होगी बल्कि वह दुखी हो जाएगा।                                    अच्छा यह तो बात हो गई कि खुशी क्या होती है या कोई भी इंसान खुश कैसे रह सकता है या दुखी क्यों हो जाता है लेकिन आप क्या जानते हैं की वास्तविकता तो यही है कि हम जिन चीजों को लेकर मन में निश्चित भाव बनाकर खु...