विवेक क्या है
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उदाहरण के लिए मिर्ची तीखी होती है हम खाते हैं हमें अच्छा लगता है शराबी रास्ते में मिलता है हम उसे शराबी जानकर बगल से निकल जाते हैं इसी प्रकार परिस्थितियों में जब हम जानते रहते हैं कि यह दोनों तरह का अर्थात अच्छा या बुरा परिणाम ला सकती है तो परिणाम आने पर हमें कष्ट नहीं होगा हमें कष्ट कब होता है जब हम अपने विवेक को संकुचित कर केवल सुखदाई परिणाम की कल्पना करते हैं और आशा महल बना कर एक ही तरह के परिणाम की प्रतीक्षा किए जाते हैं ।
तब परिणाम अपने पक्ष में आने पर हम खुशी से झूम उठते हैं और परिणाम हमारे विपरीत हो जाता है तब हम दुखी हो जाते हैं जब भौतिक जगत सुख दुख से भरा हुआ बनाया गया है तो हमें एक जैसा परिणाम कैसे आ सकता है समय अपनी गति से चलता है बाल्यावस्था युवावस्था एवं वृद्धावस्था समय के अनुसार आते ही रहते हैं इन्हें हम बदलने में रोकने में समर्थ नहीं है हम अपनी समझ को अपने विवेक बुद्धि से विस्तृत बना सकते हैं सत्य को स्वीकार सकते हैं ।
अनावश्यक आशा महल बनाने के बजाय ईश्वर का चिंतन करें मन को किसी कार्य में लगाए संसार में अथवा ईश्वर स्मरण में जैसे ही इसे हम फ्री छोड़ देते हैं तो यह केवल आशा का ताना-बाना बुनना या अनायास का बुरा परिणाम दिखाना भ्रमित करना यह सब आरंभ कर देता है जब मन से काम लेना है काम मैं मन लगाओ किंतु जैसे ही आप खाली बैठते हैं मन संसार की वस्तुओं में चला जाता है तरह-तरह के सुख सपने दिखाता है जो पूरा होने पर सुख तो अवश्य मिलता है परंतु यदि नहीं पूरी होती इच्छा तो दुख होता है बस हमें यही समझने की जरूरत है कि कर्म करना है और फल ईश्वर के ऊपर छोड़ देना है फल ईश्वर देगा जब देगा तभी उस फल को भोगना है पहले से ऐसा महल बनाना खतरे की घंटी है सुख तो आपके ना चाहने पर भी जैसे रात दिन आते हैं आप चाहे या ना चाहे वैसे सुख-दुख आना निश्चित है। यह आपके चाहने पर आधारित नहीं है इसलिए सदैव ईश्वर का स्मरण करें अपना कर्तव्य करें और खुश रहें। नमस्कार दोस्तों ओम।
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