स्वस्थ कैसे रहे
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स्वस्थ अर्थात अपने में स्थित हो जाना अपना वह है जहां सुख और शांति मिलती है। आपका मन जहां रम जाता है वही स्थान वस्तु व्यक्ति स्थिति परिस्थिति मनोरम हो जाती है किंतु अगले ही क्षण मन वहां से ऊब जाता है और हम अन्य स्थान वस्तु आदि भौतिक पदार्थों में मन लगाते हैं थोड़े से विश्राम सुख शांति तो मिलती है किंतु परम शांति एवं चिरस्थाई सुख शांति नहीं मिलती मन बेचैन हो जाता है ऐसा इसलिए होता है कि आपकी आत्मा इस परमात्मा का अंश है इसे हमेशा हमेशा सुख एवं शांति में ही गोता लगाने की आदत है इसलिए यह मन भटकता रहता है कहीं रमता नहीं ।
भौतिक पदार्थ नश्वर परिवर्तनशील अस्थाई है अतः यह सब हमें अस्थाई सुख ही दे सकते हैं क्योंकि इससे अधिक इसमें क्षमता ही नहीं है आपके अपने सुख निदान परमात्मा है वह ईश्वर है अभी शांति स्थल एवं आनंद में है उनमें अपने मन को लगाओगे तो मन अभ्यास से धीरे-धीरे हरी नाम स्मरण करते रहने से मन लगने लगेगा और जब एक बार ईश्वर में मन लगने लगेगा तो फिर भौतिक वस्तुएं नीरस लगेंगे फिर आप इनके फल की आशा में नहीं बल्कि अपने धर्म कर्तव्य को अपने सुख एवं शांति का आधार माने और यदि आपने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर अपना कर्तव्य पालन धर्म पालन किया तो इस कर्तव्य पालन से ही आपको सुख एवं शांति जरूर मिलेगी यही सुख शांति में स्थिर होना ही स्वस्थ होना है मन के भटकाव को रोकना उसे सही दिशा देना ही हमारा धर्म है क्योंकि मन ही हमारे बंधन एवं मोक्ष दोनों का कारण है।
यदि मन सही दिशा में चला तो हम मुक्त हो जाएंगे ना जगत की अभिलाषा रहेगी ना ही बार-बार जन्म मृत्यु का चक्कर रहेगा। यदि मन को बहुत ही वस्तुओं में लगाया जगत की ओर दौड़ आया तो यहां शांति मिलती नहीं है और हम मृग तृष्णा की तरफ भटकते रहेंगे कई जन्मों तक सुख शांति नहीं मिलेगी क्योंकि इसमें सुख शांति है ही नहीं। अभी हम सुख की चाहत रखते हैं शांति चाहते हैं प्रयास भी कर रहे हैं किंतु दिशा जगत की ओर है अतः बंधन मिल रहा है। किंतु जब हम सुखसागर शांता कार भगवान की और अपनी दृष्टि करेंगे मन उनके स्मरण में लगाएंगे संसार में धर्म पालन हेतु अपने कर्तव्य पालन को ही अपना लक्ष्य बनाएंगे तो अपना कर्तव्य पूरा कर लेने पर हमें असीम सुख शांति मात्र अपना कर्तव्य निर्वहन से ही प्राप्त हो जाएगी।
फल तो आगे की चीज है हरि स्मरण करते रहो मन से क्योंकि आत्म धर्म ही परमात्मा है और शरीर का धर्म भौतिक जगत है शरीर के धर्म को निभाना धर्म के लिए आवश्यक है किंतु आत्मा की धर्म को निभाने हेतु मन को ईश्वर शरण में लगाना है इस प्रकार शारीरिक धर्म निर्वाह से बहुत ही सुख और आत्मिक धर्म निर्वाह से मानसिक शांति परमानंद की प्राप्ति कर सकेंगे। हरि ओम। तो मेरे कहने का अर्थ यह है कि हम अपना मन ईश्वर में लगाएं और अपने कर्तव्यों का पालन करते रहे इस प्रकार हम स्वस्थ रह सकते हैं क्योंकि जब हम अपने स्व को स्थायित्व मैं रख कर अपना कर्म करते रहेंगे व्यर्थ की चिंता त्याग देंगे तो अवश्य ही हम स्वस्थ रहेंगे क्योंकि चिंता से ही हमारा स्वास्थ्य बिगड़ता है। तो दोस्तों इस तरह ईश्वर में मन लगाइए और अपना कर्म पूरी निष्ठा से करते जाइए और अपना जीवन सुखद और सफल बनाने का प्रयास करें नमस्कार दोस्तों मैं अपने नहीं लेख में एक नए प्रयास के साथ आपके जीवन में नया प्रकाश लाने की कोशिश करूंगा।
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