ब्रह्म या माया दोनों में सत्य क्या है

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  मनुष्य के ऊपर भ्रम या माया का प्रभाव ----- मनुष्य इस संसार में भ्रम या माया में से किसी न किसी से प्रभावित जरूर रहता है ज्यादातर माया से ही प्रभावित रहता है। जब हम माया से संबंधित चीजों का चिंतन करते हैं तो माया हमारे ऊपर हावी हो जाती है। भौतिक जगत की जो भी वस्तुएं हम देख या स्पर्श कर सकते हैं वह सब माया ही हैं। कैसे जाने की हम माया के प्रभाव में हैं----- जिसके चिंतन से हमें लोभ मोह क्रोध भय शोक और अशांति का आभास हो , तो समझ लीजिए की माया का पूरा-पूरा प्रभाव आपके ऊपर है। कैसे जाने की हम ईश्वर के प्रभाव में है----- जो नित्य निरंतर शाश्वत परम आनंद मय है उसका चिंतन जब हम करते हैं तो देखा या छुआ नहीं जा सकता लेकिन, वह अपनी कृपा से अपने होने का एहसास करता राहत है। उसे ब्रह्म के प्रभाव में आनेसे हमें शांति संतोष सुख आनंद तथा निडरता दया परोपकार की भावना प्राप्त  होती रहती है। तो समझो कि हम ईश्वर के प्रभाव में है। अब आप यह समझ गए होंगे कि कब आप ईश्वर के प्रभाव में रहते हैं और कब माया के प्रभाव में रहते हैं और कैसे। जिसका चिंतन आप ज्यादा करेंगे उसके प्रभाव में आप रहेंगे। अब यह आपको ह...

राम नाम जपने से क्या होता है




 राम सत्य स्वरूप है। राम अक्षर का अर्थ है जिस को नष्ट नहीं किया जा सकता। मानव मन कभी भी निश्चिंत नहीं रहता हमेशा थोड़ी ना थोड़ी देर पर उसे कोई ना कोई भय सताने लगता है वह रह-रहकर अशांत हो जाता है और कुछ ना कुछ ऐसा खोजता रहता है जिससे वह खुश हो सके कुछ नया वह खोजता ही रहता है जैसे कि एक बच्चा अपनी मां से जब बिछड़ता है तो कुछ देर तक तो छोटी मोटी लुभावनी चीजों में खुश रह सकता है लेकिन थोड़ी देर के बाद ही वह फिर अपनी मां को खोजने लगता है मां के लिए छटपटाते रहता है जरा सोचिए कि मां में ऐसा क्या है जिसके लिए वह पूरी तरह से परेशान रहता है और  बस उसे मां के पास जाना  रहता है जानते हैं क्या मां में है वह सुरक्षा भावना जो उसे कहीं और नहीं मिलती उसे मां के पास भय से मुक्ति मिलती है अनेक इच्छाओं और सुविधाओं जिनका वह बच्चा विचार भी नहीं किया रहता लेकिन वह उसके लिए हितकारी होता है वह चीजें बिना मांगे ही मां उसे देती है ऐसी ही शांति या यूं कहिए कि इससे भी अधिक शांति तथा हमारे सुविधाओं को बिना मांगे पूर्ति करने वाला अद्भुत राम नाम जप ही है। हमें सद्गुण एवं सक्षम का विजई होना बहुत पसंद है इसीलिए तो हम कथाओं में या फिल्मों में जब सत्य और सद्गुण को जीतते हुए देखते हैं तो हमें बहुत ही  प्रसन्नता होती है। 

                      सच तो यही है कि अगर आप एक प्रतिभावान बच्चे को देखते हैं तो आप उसकी सराहना किए बिना नहीं रहते क्योंकि हम सब को सुख और शांति चाहिए होती है सद्गुणों से हमें सुख मिलता है और शांति भी मिलती है यह गलत नहीं है यह बहुत अच्छी बात है लेकिन गलत यह है कि हमने उन सुखों को पाने के लिए गलत रास्ते अपना लिए हैं भौतिक सुख-सुविधाओं में अपनी शांति तलाश कर रहे हैं जो कि नृत्य डराने वाली और नित्य परिवर्तनशील होने वाली है डराने वाली से मेरा मतलब है कि कहीं ना कहीं डर छुपा रहता है कि पता नहीं यह चीज आज है कल रहेगी या नहीं कैसी है क्या है पता नहीं पता नहीं कल क्या होगा हमेशा इसी चिंता में हम लगे रहते हैं।

                                  मृग प्यासा है उसे रेत में जल दिखता है लेकिन वास्तव में तो जल वहां है ही नहीं और यही कारण है कि उसकी प्यास बुझती ही नहीं वह इधर-उधर भागता रहता है सुराही में रखे अनाज के दाने को प्राप्त करने हेतु बंदर जब अपना हाथ डालता है तो सुराही का मुख सकरा होने के कारण और मुट्ठी बंधने से हाथ निकलता नहीं और वह पकड़ लिया जाता है तथा फस जाता है हमारी आसक्ति ही हमारे दुखों का कारण है हमारा लोभ ही हमें बांध के रखता  है इस प्रकार हम अपनी छोटी बुद्धि के कारण  दुखदाई वस्तु जो अंततः अत्यधिक दुखदाई है उसे के चिंतन में लगे हैं जिससे हमें प्रत्येक क्षण डर एवं दु ही मिलता रहता है और यातना झेलनी पड़ती है।

                                       राम सत्य है इनका स्मरण करते रहने से भौतिक एवं माया से मुक्त द्वंद मय में संसार में आसक्ति नहीं रहेगी फिर जो भी हमें जब तक के लिए मिलेगा उसे हम प्रसन्नता पूर्वक ग्रहण करेंगे तथा आने वाले का स्वागत करेंगे। यही परम सत्य है किंतु हमें पूर्ण विश्वास नहीं है ईश्वर पर जैसे 3 साल का बच्चा मां को प्यार करता है मां को मानता है मां भी मानती है किंतु मां जब नदी में बच्चे को स्नान कराने ले जाती है तो बच्चा नदी में अपने बलबूते पर ही उतरना चाहता है मां पर उसे संदेह है कि कहीं मां के हाथ से हम फिसल ना जाए इसलिए स्वयं की शक्ति लगाता है इसी प्रकार हम भी ईश्वर को जानते हैं मानते हैं किंतु पूर्ण विश्वास नहीं है थोड़ा विश्वास स्वयं पर है हमें नहीं पता कि हम अपनी जिस शक्ति पर विश्वास जमाए बैठे हैं वह शक्ति भी उसी परमात्मा की दी हुई शक्ति है।

                               जिनके पास आनंद का सागर है वही ईश्वर उस सागर की सिर्फ एक बूंद रस से ही समस्त सृष्टि का पालन पोषण कर रहे हैं सिर्फ अपने अज्ञानता के ही कारण हम भगवान को भूल कर अपनी सत्ता अपनी शक्ति चलाते हैं तो हमें अशांति तो मिलनी ही है। मन व्यग्र एवं चंचल रहेगा ही इसे राम के नाम जप के अतिरिक्त हम किसी भी नश्वर भौतिक वस्तु से स्थिर नहीं कर सकते हैं और जब तक मन स्थिर नहीं होगा हमें सही और गलत का ज्ञान नहीं होगा हम शांति सुख से वंचित ही रहेंगे।

                                      एक लोटा जल हाथ में लेकर यदि कोई कुछ बात कहता है तो हम यकीन करते हैं कि सही कह रहा है किंतु भगवान शंकर जी के मस्तक पर स्वयं गंगाजल विराजमान है वह कहते हैं कि राम भजन सबसे शक्तिशाली भजन है हरि स्मरण करो मन स्थिर हो जाएगा मन स्थिर होते ही विवेक जागृत हो जाएगा विवेक जागृत होने से नश्वर  जगत से आसक्ति समाप्त हो जाएगी कोई भी वस्तु आपको दुख नहीं दे पाएगी शांति एवं सुख ही सुख होगा यही परम पद मोक्ष है।

                                       मित्रों मैं यह कभी नहीं कहता कि आप अपने कर्तव्यों का पालन ना करें आप यह संसार में अपनी भूमिका छोड़कर सिर्फ राम नाम जप करते रहे सिर्फ भगवान का ही नाम लेते रहें बाकी सारे कर्तव्यों को छोड़ दे ऐसा मैं बिल्कुल नहीं कहता बल्कि मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि हम भगवान का नाम लेते हुए अपने सारे कर्तव्यों का पालन करें ताकि हमारा जीवन आसान हो जाए और मेरा यह लेख लिखने का सिर्फ यही उद्देश्य है कि मैं थोड़ा सा प्रकाश आप लोगों के जीवन में डाल सकूं और इन्हीं नए प्रयासों के साथ मै अपने नए लेख में मिलूंगा तब तक के लिए नमस्कार दोस्तों।

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