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ब्रह्म या माया दोनों में सत्य क्या है

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  मनुष्य के ऊपर भ्रम या माया का प्रभाव ----- मनुष्य इस संसार में भ्रम या माया में से किसी न किसी से प्रभावित जरूर रहता है ज्यादातर माया से ही प्रभावित रहता है। जब हम माया से संबंधित चीजों का चिंतन करते हैं तो माया हमारे ऊपर हावी हो जाती है। भौतिक जगत की जो भी वस्तुएं हम देख या स्पर्श कर सकते हैं वह सब माया ही हैं। कैसे जाने की हम माया के प्रभाव में हैं----- जिसके चिंतन से हमें लोभ मोह क्रोध भय शोक और अशांति का आभास हो , तो समझ लीजिए की माया का पूरा-पूरा प्रभाव आपके ऊपर है। कैसे जाने की हम ईश्वर के प्रभाव में है----- जो नित्य निरंतर शाश्वत परम आनंद मय है उसका चिंतन जब हम करते हैं तो देखा या छुआ नहीं जा सकता लेकिन, वह अपनी कृपा से अपने होने का एहसास करता राहत है। उसे ब्रह्म के प्रभाव में आनेसे हमें शांति संतोष सुख आनंद तथा निडरता दया परोपकार की भावना प्राप्त  होती रहती है। तो समझो कि हम ईश्वर के प्रभाव में है। अब आप यह समझ गए होंगे कि कब आप ईश्वर के प्रभाव में रहते हैं और कब माया के प्रभाव में रहते हैं और कैसे। जिसका चिंतन आप ज्यादा करेंगे उसके प्रभाव में आप रहेंगे। अब यह आपको ह...

माया और ईश्वर में अंतर कैसे समझें और कैसे अपने जीवन में उतारे

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जीव ब्रह्म और माया- जीव ब्रह्म और माया यह ही तीन तत्व है। अब जीव तो हम हैं तथा ब्रह्म जहां से हम आए हैं बीच में माया का आवरण है जिससे जीव ब्रह्म तक नहीं पहुंच पाता। यद्यपि की ब्रह्म हमारे अंदर और बाहर मौजूद है किंतु माया से ढके होने के कारण हमें दिखाई नहीं पड़ता जैसे सूर्य निकलता है और हम सूर्य की तरफ देख रहे हैं किंतु बीच में बादल होने की वजह से नहीं दिखता और हमारी ठंडी दूर नहीं हो पाती।  माया के प्रकार- माया के दो प्रकार हैं विद्या माया और अविद्या माया अविद्या माया जीव को  तरह-तरह के आशा प्रलोभन उठापटक में लोभ मोह आदि में जकड़ कर बांधती रहती है किंतु विद्या माया हमें बंधन से मुक्त करती है। कैसे चाबी को एक तरफ घुमाने से ताला बंद होता है और दूसरी तरफ घुमाने से खुलता है चाबी को हम खराब नहीं कह सकते उसके तो बंद होने और खोलने के दोनों के गुण हैं इसी प्रकार मन को हम जब संसार की तरफ लगाते हैं तो बंधन होता जाता है और जब ईश्वर शरण में लगाते हैं तो बंधन मुक्त अर्थात दुख से छुटकारा होता है। किस तरह ईश्वर को ना चुनकर हम माया को चुन लेते हैं- ईश्वर और माया जब दो ही हैं तो यदि हम ईश्वर भी...

सुख कैसे मिलता है

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सुख के साधन  सुख पाने के निम्न साधन है जिस पर चलकर सुख मिल सकता है सुख ना धन में है न किसी व्यक्ति वस्तु अस्थान स्थिति परिस्थिति में है सुख के लिए विद्या होनी चाहिए और विद्या ऐसी जो विनम्रता पैदा कर दे फिर पात्रता कुशलता ऐसी हो जिससे धन अर्जन हो सके। धन की गति धन प्राप्त होने पर उसका खर्च सही तरीके से  हो जैसे धन की तीन गति होती है प्रथम दान दूसरा भोग तथा तीसरी गति नाश होती है वह धन धन्य है जिसकी प्रथम गति हो जिसमें अन्य जीवों के कल्याण के साथ अपना कल्याण होता है वही उचित वह है सृष्टि के पुष्पित पल्लवित बने रहने हेतु किया गया वह समाज को बनाने पर किया गया खर्च श्रेष्ठ है। स माज का हमारे लिए महत्व समाज का हमारे लिए अपना महत्व है ध्यान रहे जब समाज सुखी रहेगा तभी हम भी पूर्ण रूप से सुखी रह पाएंगे क्योंकि हमारा जीवन बहुत कुछ समाज पर ही निर्भर करता है हम अपनी आवश्यकता की पूर्ति बिना समाज के नहीं कर सकते इसी प्रकार जब धर्म होगा तो सुख जो हमें मिलेगा वही स्थाई सुख होगा। कर्म का हमारे लिए महत्व  हमारे पूर्व कृत्य पुण्य कर्म ही हमें सुख देते हैं वह सुख ईश्वर के अधीन है वह कैसे देंग...

जीवन चक्र क्या है

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मानव जीवन का आधार   मानव जीवन जीवो के उद्धार के लिए हैं बंधनों से मुक्त होने के लिए ईश्वर की कृपा प्रसाद रूप में मिला है।। आत्मा ईश्वर का अंश है  जीवात्मा परमात्मा का ही  अंश है। मनुष्य हमेशा आनंद में ही रहना चाहता है क्योंकि इसकी वास्तविक स्थिति आनंद स्वरूप ही है। जीव अपने कर्मों के फल के रूप में अनेकों सुख दुख भोगता है अनेकों खुशियां और कष्ट पाता है। ईश्वर एक विधान के तहत जीव के कर्मों का फल सुनिश्चित करता है उसे सुख या दुख के रूप में देता है। सुख एवं दुख हमारे वर्तमान एवं पूर्व कृत कर्मों का ही फल है। यद्यपि कर्म की विधान एवं ईश्वर का विधान जानना अत्यंत कठिन है फिर भी सभी वेद पुराणों के निष्कर्ष इसी बात की पुष्टि करते हैं कि ईश्वर परम न्यायप्रिय है और हमारा हित ही चाहने वाला है। वह कभी किसी के साथ कोई भेदभाव या पक्षपात नहीं करता और बिना समय के अनायास नहीं करता है।  जीवन चक्र कैसे चलता है कर्म का और फल देने का अधिकार किसे है कर्म करने का अधिकार ईश्वर ने मनुष्य को दिया है लेकिन उसके फल का निर्धारण का अधिकार अपने पास रखा है इसका मतलब यह नहीं है कि हमें कर्म का फल मिल...

किस तरह हम मन से मोक्ष भी पा सकते हैं या बंधे भी रह सकते हैं

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शरीर का मन के साथ कैसा रिश्ता है शरीर एवं मन को एक साथ रखो साथ रखते तो है ही हां रखते हैं किंतु शरीर को मन के साथ मन के अनुसार चलाना चाहते हैं किंतु हमारा शरीर भौतिक है इसे संस्कारों में क्षमताओं में इसकी सीमाओं में बंधे रहकर चलना पड़ता है। शरीर के धर्म सभी के साथ निर्धारित है वैसे भी शरीर दृश्य मान है इसमें वजन भी है तो बहुत सारी बंधनों से बंधा हुआ है इसे वस्त्र की आवश्यकता होती है इसे सोने की आवश्यकता होती है इसे स्नान की आवश्यकता होती है यह उड़ नहीं सकता इसे भूख प्यास कम लगती है संसार की सारी मर्यादाओं का पालन शरीर से ही होता है। हमारा मन कैसा है मन अदृश्य मान भूख प्यास से रहित अपनी स्वच्छंदता अपनी मस्ती में निपुण कहीं भी कभी भी आ जा सकता है कभी भी कुछ भी सोच सकता है और मन शरीर से गलत सही कुछ भी करने को बोलता रहता है इसे हम जितना ही अपने बुद्धि विवेक से विचार करके नियंत्रित किए रहते हैं उतना प्रतिशत हम सुखी रहते हैं अन्यथा पहले तो यह अपने संकल्प विकल्प अच्छे बुरे तरह-तरह के सब्जबाग कल्पनाओं की सैर कराता है जिससे हमें तरह-तरह के सुख और दुखों में एहसास करा कर मस्तिष्क को तनावपूर्ण करत...

भगवान में विश्वास कैसे रखें

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  जब किसी के प्रति हमें श्रद्धा होती है तो उसके प्रति हमें प्रेम और भक्ति अपने आप ही आ जाती है। श्रद्धा से हमें फायदा यह है कि जो व्यक्ति आपको अच्छा लगेगा उसके काम आपको अच्छे लगेंगे वह आपको अच्छा लगेगा उसकी हर बात आपको अच्छी लगेगी। ईश्वर के प्रति यदि हमारी श्रद्धा हो जाए तो हमें या संसार अच्छा लगने लगेगा अर्थात उनका काम हमें अच्छा लगने लगेगा बल्कि उनकी सभी क्रिया वस्तु सब के सब अच्छे लगने लगेंगे और जब अच्छे लगेंगे तो हम खुश रहेंगे हमारी खुशी ही हमें आनंद में पहुंचाती है जो हमारा लक्ष्य है।  किसी के प्रति श्रद्धा कब होती है जब हम उसको देखें अथवा उसके साथ रहे या उसके विषय में जाने सुने यही उपाय है श्रद्धा प्रेम भक्ति का। अब हमें ईश्वर से श्रद्धा करनी है तो वह कैसे की जाए क्योंकि ईश्वर के साथ तो हम रह सकते नहीं उन्हें देख सकते नहीं उनके बारे में बस सुन सकते हैं बुजुर्गों से और धार्मिक पुस्तकों में पढ़ सकते हैं और अपने माता-पिता से सुन सकते हैं। आनंद की इच्छा रखने वाले जीव को चाहिए कि माता पिता गुरु संत तथा धार्मिक पुस्तकों से प्रेम बनाए रखें तो उसका कल्याण निश्चित है। दूसरा उपाय ...