माया और ईश्वर में अंतर कैसे समझें और कैसे अपने जीवन में उतारे
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जीव ब्रह्म और माया-
जीव ब्रह्म और माया यह ही तीन तत्व है। अब जीव तो हम हैं तथा ब्रह्म जहां से हम आए हैं बीच में माया का आवरण है जिससे जीव ब्रह्म तक नहीं पहुंच पाता। यद्यपि की ब्रह्म हमारे अंदर और बाहर मौजूद है किंतु माया से ढके होने के कारण हमें दिखाई नहीं पड़ता जैसे सूर्य निकलता है और हम सूर्य की तरफ देख रहे हैं किंतु बीच में बादल होने की वजह से नहीं दिखता और हमारी ठंडी दूर नहीं हो पाती।
माया के प्रकार-
माया के दो प्रकार हैं विद्या माया और अविद्या माया अविद्या माया जीव को तरह-तरह के आशा प्रलोभन उठापटक में लोभ मोह आदि में जकड़ कर बांधती रहती है किंतु विद्या माया हमें बंधन से मुक्त करती है। कैसे चाबी को एक तरफ घुमाने से ताला बंद होता है और दूसरी तरफ घुमाने से खुलता है चाबी को हम खराब नहीं कह सकते उसके तो बंद होने और खोलने के दोनों के गुण हैं इसी प्रकार मन को हम जब संसार की तरफ लगाते हैं तो बंधन होता जाता है और जब ईश्वर शरण में लगाते हैं तो बंधन मुक्त अर्थात दुख से छुटकारा होता है।
किस तरह ईश्वर को ना चुनकर हम माया को चुन लेते हैं-
ईश्वर और माया जब दो ही हैं तो यदि हम ईश्वर भी मन नहीं लगा रहे हैं अर्थात हरि स्मरण नहीं कर रहे हैं तो माया स्मरण तो निरंतर चलता ही रहता है हम एक क्षण भी बिना अपना लक्ष्य यानी ईश्वर प्राप्ति के विश्राम नहीं लेते। गलती यहां पर यही हो रही है कि हमें सुख चाहिए और संसार अर्थात माया भौतिकता में हम सुख खोज रहे हैं इसमें सुख है ही नहीं मैंने मार्ग ही गलत चुना जन्म पर जन्म लेते रहने पर भी सुख परमसुख अर्थात ईश्वर नहीं मिलेगा।
एक उदाहरण से समझते हैं-
अब करना यह है कि ताला खोलने के लिए चाबी दूसरी तरफ घुमाइए तब सुख सागर ईश्वर हमें मिलेगा। ईश्वर का नाम ऐसा है कि जब वह मन में जाग जाता है तो इतनी दूरी तक या कहिए कि उतने एरिया में माया का प्रभाव बिल्कुल समाप्त हो जाता है बार-बार ईश्वर स्मरण करते रहने से ही माया का भौतिकता का विस्मरण होने लगता है उनके लोक लुभावने आशा बंधन की सत्यता का ज्ञान होता चला जाता है।
प्रकाश की तरह है ईश्वर-
जैसे अंधकार में बहुत सारी वस्तुएं हैं अंधकार में विलीन हो जाती है किंतु प्रकाश अंधकार में विलीन नहीं होता बल्कि अंधकार का नाश करता है वैसे ही ईश्वर नाम माया में विलीन नहीं होता बल्कि माया का प्रभाव नष्ट करता है। ईश्वर सत्य है वही सुखदाई है माया असत्य भ्रम एवं बंधन देने वाली दुख कारी है। संसार में मात्र ईश्वर के कुछ भी सुख कारी नहीं है ईश्वर की प्रेरणा से असत्य भौतिक जगत हमें क्षणिक सुख प्रदान करता है किंतु अस्थाई एवं परम शांति दायक सुख तो ईश्वर में ही है परमानंद अर्थात आनंद सुख का खजाना ईश्वर ही है।
मैंने अपने इस लेख में आपको यही समझाने का प्रयास किया है कि किस तरह सरल तरीके से हम ईश्वर और माया में अंतर समझ कर ईश्वर के मार्ग को अपनाकर अपना जीवन आसान बना सकते हैं और अपने जीवन में सुख पा सकते हैं। मैं अपने लेख में इन्हीं तरह की बातों को स्पष्ट करने का प्रयास करता हूं और आपके जीवन को आसान बनाने का प्रयास करता हूं मैं अपने नए लेख में कुछ इन्हीं प्रयासों के साथ एक बार फिर से आपके सामने प्रस्तुत होऊंगा तब तक के लिए नमस्कार हरिओम।
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