अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है
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अच्छा कर्म करने वालों को बुरा फल क्यों मिलता है-
ज्यादातर आपने देखा होगा दोस्तों की जो लोग अच्छे कर्म करते हैं जो अच्छे मन के होते हैं उन्हें कष्ट भी ज्यादा मिलता है उन लोगों की अपेक्षा जो कि इतने अच्छे नहीं होते ना कि उनका कर्म इतना अच्छा होता है।
इस बात को इस तरह से समझिए सबसे पहली बात कि सुख और दुख दोनों ही सभी को मिलता है इसमें कोई संदेह नहीं है दूसरी बात यह है कि जिस प्रकार किसी का मकान बनना शुरू होता है तब वह मकान उस मकान से भी खराब दिखता है जिसका नव निर्माण नहीं हो रहा है। अच्छा बनाने के लिए पहले मकान गिराना पड़ता है उसमें धूल धक्कड़ होती है ।
दूसरा ईश्वर हमें इस नश्वर परिवर्तनशील और दुख और कष्ट से भरे संसार की सत्यता को बताना चाहते हैं और हमें संसार और भौतिक पदार्थ की आसक्ति से बाहर निकालना चाहते हैं।
तीसरी बात जन्म और मरण के चक्र में जीवात्मा 8400000 योनियों में भ्रमण करता है केवल संसार में आसक्ति के कारण ही ऐसा होता है।
किस तरह ईश्वर हमारे कर्मों का लेखा जोखा करते हैं और हमें सही दिशा में रखते हैं-
अब जब हम ईश्वर की भक्ति में लीन होकर उन्हीं के अधीन अच्छे कर्म एवं पूजा पाठ तथा अच्छे जीवन यापन करना आरंभ करते हैं तो भगवान भी मन बनाते हैं कि अब इसको अगला जन्म नहीं देना है इसे मोक्ष देना है जैसे ही ईश्वर हमारे लिए सर्वोत्तम मोक्ष का विचार करते हैं तो उनके सामने यह समस्या आती है कि हमारे पूर्व जनित पाप कर्म जो प्रारब्ध बनकर हमारे सामने खड़े हैं उन्हें क्या करें,
अगले जन्म के लिए उसे ले नहीं जा सकते क्योंकि अगला जन्म तो होना नहीं है अतः सभी कर्मों का फल इसी जन्म में ही यथासंभव कम कर के दे देते हैं और फिर हमारा मन क्लीन करके हमें मोक्ष देकर अपने धाम में जाने का अधिकारी बनाते हैं।
कर्म के प्रकार कितने होते हैं और किस तरह यह हमारे जीवन पर असर डालते हैं-
कर्म तीन प्रकार के होते हैं संचित वर्तमान कर्म तथा प्रारब्ध कर्म।
संचित कर्म जो हमारे पूर्व कृतं कर्म है उन्हें भगवान अपने भक्तों के ऊपर कृपा करके उनके पाप कर्म के फल को नष्ट कर देते हैं।
और जो हमारी वर्तमान कर्म है मतलब जो हम आज के समय में वर्तमान में कर रहे हैं उनमें पाप कर्म होने नहीं देते हैं या ईश्वर की कृपा होती है जो अपने भक्तों को पाप कर्म करने से बचाते हैं।
और जो संचित कर्म है और जो वर्तमान कर्म है उनको मिलकर जो हमारा प्रारब्ध कर्म फल बनता है उसे हमें भोगना ही पड़ता है हां उसे भोगने की शक्ति ईश्वर आश्रय लेने से हमारे अंदर आ जाती है इस प्रकार अच्छा कर्म अच्छा आचरण ईश्वर शरणागति ईश्वर स्मरण हमेशा श्रेष्ठ है सुखकामी है इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
इस लेख का सारांश-
सबसे बड़ी बात यह है दोस्तों की यह जीवन और इस जीवन का ढंग मतलब यह हमारा जीवन जिस तरह से चलता है इसको हम जिस तरह समझते हैं जिस तरह से देखते हैं यह सिर्फ उतना नहीं है हमें यहां कर्मों के बंधन में बंध के ही रहना होता है और उसका असर भी हमारे पूरे जीवन पर पड़ता ही है हम लाख कोशिश कर ले हम अपने कर्मों का फल भोगने से बच नहीं सकते और इन सारी व्यवस्था को देखने वाला है ईश्वर , ईश्वर सारी व्यवस्था को अपने अधीन रख कर हमें अपने पाप कर्म और अच्छे कर्मों का फल समय-समय पर देता ही रहता है हम ईश्वर पर भरोसा रखें अच्छे कर्म करते हैं तो हम पाप कर्मों के फल से ज्यादातर बच जाते हैं ,
लेकिन सच यही है कि हमें संसार में अपना रोल तो निभाना ही होता है लेकिन हमें यह सोच कभी नहीं रखनी चाहिए कि जो अच्छा कर्म करते हैं उनके साथ बुरा होता है ऐसा सत्य नहीं है हां यह कभी-कभी दिखता है लेकिन ऐसा नहीं होता है इसके पीछे बहुत बड़े-बड़े कारण होते हैं जो कि कर्मों से जुड़े होते हैं और अंततः कहीं ना कहीं सच यही होता है कि जो अच्छा कर्म करते हैं उन्हें अच्छा फल जरूर मिलता है आज नहीं तो कल उनका जीवन अच्छा जरूर होता है यही ईश्वर का न्याय है इसलिए ईश्वर पर विश्वास रखें और अपना अच्छा कर्म करते रहे नमस्कार दोस्तों मैं अपने नए लेख में नए प्रयास के साथ मिलूंगा जिससे कि मैं आपके जीवन में कुछ नया प्रकाश डाल सकूं तब तक के लिए नमस्कार हरि ओम।
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