भगवान के न्याय का रहस्य
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ईश्वर न्यायप्रिय और समदर्शी तथा अत्यंत धैर्यवान और नियम अनुकूल चलने वाले तथा सत्य एवं धर्म और अपने आश्रितों की रक्षा करने वाले हैं। वह अपने दास को इतना चाहते हैं कि उसे बाहर नहीं अपितु अपने हृदय में ही स्थान देते हैं जबकि ईश्वर हर जगह मौजूद है लेकिन वह निर्गुण और निराकार ही हैं वह अपने भक्तों के लिए भक्तों की इच्छा के अनुरूप विविध रूप धारण कर लेते हैं।
अब सवाल यह उठता है कि ईश्वर सब कार्य नियम अनुसार ही करते हैं और न्याय प्रिय है तो तो फिर भक्तों को अधिक प्रेम कैसे कर सकते हैं यदि वे समदर्शी हैं तो किसी को अधिक किसी को कम प्रेम करना यह समान कहां हुआ यदि सभी को प्रेम करते हैं तो फिर जो उनसे प्रेम करते हैं एवं जो नहीं करते दोनों में अंतर क्या हुआ।
ईश्वर विधान के बाहर जाकर कोई कार्य नहीं करते यह सर्वथा सत्य है किंतु उनके विधान तो सुनिए जो सबके लिए समान रूप से है यह बात और है कि कोई उस विधान पर अमल कर लाभ उठा लेता है कोई नहीं उठा पाता। कौन सा विधान है यह विधान है कि जो व्यक्ति जीव अनन्य भाव से ईश्वर की शरणागति प्राप्त कर लेता है मतलब ईश्वर पर ही आश्रित रहता है हर तरह से उसके लिए जो उसे प्राप्त नहीं है उसे देने के लिए तथा जो उसे प्राप्त है उसकी रक्षा के लिए ईश्वर हमेशा तैयार रहते हैं।
रक्षा हेतु हमेशा तैयार रहते हैं या बात सभी पर समान रूप से लागू होती है तो बताओ भगवान समदर्शी हैं कि नहीं तथा ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं कि नहीं एक बात जान लीजिए ईश्वर यद्यपि सभी नियम से ऊपर है किंतु वह स्वयं नियम नहीं तोड़ते। पापी से पापी को भी सुधारने हेतु अंतिम क्षण तक अवसर देते हैं अंत में जब वह अवसर का भी लाभ नहीं उठा पाता तो उसे दंडित करते हैं और यह उनकी न्याय प्रियता है पर भरोसा रखो सुखी रहोगे ।
हरि ओम नमस्कार दोस्तों मैं अपने नए लेख में एक नए प्रयास के साथ आपके सामने फिर आऊंगा जो कि एक सामान्य इंसान को ईश्वर से जोड़ सके और जीवन में प्रकाश ले आए ऐसा लेख लिखने की मैं कोशिश करता हूं और मेरा सिर्फ यही उद्देश्य है कि मैं कम से कम किसी एक आदमी के जीवन में भी प्रकाश ला सकूं और सरल तरीके से वह अपना जीवन जी सके या मेरे लिए बहुत खुशी की बात होगी धन्यवाद।
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